Journal of Advances in Developmental Research
E-ISSN: 0976-4844
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Impact Factor: 9.71
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Volume 16 Issue 1
2025
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भारत में सामाजिक असमानता एवं वर्ग संघर्ष का समाजशास्त्रीय अध्ययन
Author(s) | Ramprasad Bairwa |
---|---|
Country | India |
Abstract | भारतीय समाज की सामाजिक संरचना अत्यधिक विविधतापूर्ण और जटिल है, जो प्राचीन काल से लेकर आज तक विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक समूहों का एक मिश्रण है। यह संरचना केवल सामाजिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी गहरे प्रभाव डालती है। भारतीय समाज में विविधता का यह अद्वितीय रूप न केवल इसकी संरचना में अभिव्यक्त होता है, बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने, जीवनशैली, परंपराएँ, और रीति-रिवाजों में भी परिलक्षित होता है। समाज में अलग-अलग जातियाँ, धर्म, और भाषाएँ रहने के बावजूद, एक साथ मिलकर यह प्रणाली भारतीय समाज की अनूठी पहचान बनाती है। भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में वर्ग, जाति और धर्म का केंद्रीय स्थान है, जो न केवल व्यक्तिगत पहचान को निर्धारित करता है, बल्कि सामाजिक संबंधों, अधिकारों और कर्तव्यों का भी निर्धारण करता है। वर्गीय असमानता, धर्म के आधार पर भेदभाव, और जातिवाद जैसी जटिलताएँ भारतीय समाज की सामाजिक संरचना को प्रभावित करती हैं। इसके अलावा, संस्कृति का समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो सामाजिक व्यवहार, मूल्यों और विश्वासों को आकार देती है। संस्कृति के इस प्रभाव को भारतीय समाज में शक्ति और वर्ग संरचनाओं से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये सभी तत्व आपस में जुड़कर भारतीय समाज की समग्र सामाजिक संरचना को उत्पन्न करते हैं। समाजशास्त्र में सामाजिक संरचना के अध्ययन का उद्देश्य यह समझना है कि समाज के विभिन्न घटक एक-दूसरे के साथ कैसे इंटरेक्ट करते हैं और एक सामान्य सामाजिक प्रणाली में कैसे कार्य करते हैं। भारतीय समाज में यह विश्लेषण और भी जटिल हो जाता है, क्योंकि यहाँ पर विभिन्न प्रकार के वर्ग, जाति, धर्म, और संस्कृतियाँ मिलकर समाज के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं को प्रभावित करती हैं। वर्ग, शक्ति और संस्कृति की आपसी अंतर्संबंधिता भारतीय समाज की सामाजिक संरचना को समझने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ग की अपनी पहचान और भूमिका है, जो न केवल सामाजिक स्थिति को निर्धारित करती है, बल्कि उनके राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों को भी आकार देती है। उदाहरण के तौर पर, उच्च जातियों और वर्गों के पास समाज में अधिक शक्ति और संसाधन होते हैं, जबकि निम्न वर्ग और दलित समुदायों को अक्सर सामाजिक और राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा जाता है। इसी तरह, संस्कृति का भी सामाजिक संरचना में गहरा प्रभाव है। भारतीय संस्कृति में धर्म, जाति और पारंपरिक मान्यताएँ समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विभाजन और असमानताओं को बढ़ावा देती हैं। इस शोध पत्र का उद्देश्य भारतीय समाज की सामाजिक संरचना का विश्लेषण करना है, खासकर वर्ग, शक्ति और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य से। यह अध्ययन भारतीय समाज के सामाजिक ताने-बाने को समझने में मदद करेगा और यह बताएगा कि कैसे विभिन्न वर्ग, शक्ति संरचनाएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ आपस में मिलकर समाज की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को आकार देती हैं। इसके माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार भारतीय समाज में विविधता का यह मिश्रण सामाजिक समरसता और न्याय के लिए चुनौतीपूर्ण बनता है, और इसके समाधान के लिए किस प्रकार के सुधारों की आवश्यकता हो सकती है। वर्ग और सामाजिक संरचना भारत में सामाजिक संरचना का अध्ययन करते समय वर्ग और जाति की अवधारणाओं का विशेष महत्व है। भारतीय समाज में वर्ग का निर्धारण पारंपरिक रूप से जाति व्यवस्था, आर्थिक स्थिति, और सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार पर किया जाता है। भारतीय समाज में सामाजिक वर्गों की स्थिति इस प्रकार निर्धारित होती है कि व्यक्ति या समूह के पास जो संसाधन हैं, जैसे कि धन, सत्ता, शिक्षा और अवसर, उनके आधार पर उनका स्थान तय होता है। हालांकि जातिवाद की जड़ें प्राचीन भारतीय समाज में गहरी हैं, लेकिन आज के समय में आर्थिक और राजनीतिक संदर्भ भी इस वर्गीकरण में प्रभावी हैं। सामाजिक वर्गों की संरचना भारतीय समाज में वर्गों का विभाजन मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में किया जाता है— उच्च वर्ग, मध्य वर्ग और निम्न वर्ग। उच्च वर्ग में आमतौर पर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जैसे जातियाँ शामिल होती हैं, जो समाज में सबसे ज्यादा सम्मान और आर्थिक ताकत रखती हैं। इन वर्गों के पास भूमि, संपत्ति और अन्य संसाधनों का पर्याप्त नियंत्रण होता है, जो उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाता है। वहीं, मध्य वर्ग आर्थिक दृष्टि से समृद्ध तो होता है, लेकिन उसकी सामाजिक स्थिति उच्च वर्ग की तुलना में थोड़ी कम होती है। यह वर्ग मुख्यत: व्यापारियों, पेशेवरों, शिक्षित नागरिकों, और कर्मचारियों का बना होता है। निम्न वर्ग में मुख्यत: शूद्र और अति-पिछड़ा वर्ग शामिल होते हैं। यह वर्ग समाज में अक्सर उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार होता है। शूद्रों और दलितों को पारंपरिक रूप से समाज में निम्न स्थिति प्राप्त थी, और इन्हें आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक दृष्टि से हाशिए पर रखा जाता था। इन्हें समाज की मुख्यधारा से बाहर कर दिया जाता था और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता था। आज भी कई ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इन वर्गों को विभिन्न प्रकार की असमानताओं और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, चाहे वह रोजगार, शिक्षा या राजनीति में हो। जातिवाद और वर्ग असमानता भारत में जातिवाद का मुद्दा इस वर्गीकरण से गहरे जुड़ा हुआ है। जातिवाद ने न केवल भारतीय समाज में सामाजिक वर्गों के बीच असमानताएँ उत्पन्न की हैं, बल्कि इन असमानताओं के चलते आर्थिक और राजनीतिक अवसरों में भी बड़ा अंतर पैदा हुआ है। जातिवाद ने उच्च और निम्न जातियों के बीच सामाजिक अंतर को बढ़ावा दिया, और यह अंतर आज भी अस्तित्व में है। उच्च जाति के लोग समाज में प्रमुख पदों पर काबिज रहते हैं और उन्हें अधिक संसाधन, शिक्षा, और अवसर मिलते हैं। दूसरी ओर, निम्न जाति और दलित वर्ग के लोग सामाजिक और सांस्कृतिक भेदभाव का सामना करते हैं, जो उन्हें उनकी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार करने से रोकता है। जातिवाद का प्रभाव केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज और राष्ट्र की संरचना को प्रभावित करता है। भारतीय समाज में कई जगहों पर जातिवाद का प्रभाव ऐसे शक्तिशाली ढांचे में समाहित हो गया है, जहाँ ये वर्ग संघर्ष समाज में समानता की दिशा में बाधाएँ उत्पन्न करता है। जातिवाद का यह नेटवर्क सामाजिक संरचना में व्याप्त असमानता को स्थिर बनाए रखता है, जो भारतीय लोकतंत्र की मूलभूत मूल्यों जैसे समानता, न्याय, और स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर चुनौती है। वर्गीय असमानता और सामाजिक न्याय वर्गों के बीच यह असमानता भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है। कई दशक पहले, भारतीय संविधान ने जातिवाद को समाप्त करने के लिए कई प्रावधानों को लागू किया, जैसे कि दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण, लेकिन इन असमानताओं को समाप्त करने के लिए और अधिक प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकारी योजनाओं और सुधारों के बावजूद, भारतीय समाज में वर्गीय भेदभाव और असमानताएँ दूर करने में अभी भी बहुत बाधाएँ हैं। वर्गीय असमानता के कारण, समाज में उच्च वर्गों और निम्न वर्गों के बीच आर्थिक और सामाजिक असंतुलन बढ़ता जा रहा है। गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अन्य बुनियादी सुविधाओं तक समान पहुंच नहीं मिलती है, जो उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण में बाधक है। इसके अलावा, निचले वर्गों में महिलाओं, आदिवासियों और अन्य सामाजिक रूप से कमजोर समूहों को भी विशेष रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार, भारतीय समाज की वर्गीय संरचना और जातिवाद के बीच गहरा संबंध है। वर्गीकरण के आधार पर न केवल व्यक्ति की पहचान बनती है, बल्कि उसके अधिकारों और अवसरों पर भी प्रभाव पड़ता है। हालांकि, संविधान और विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से असमानताओं को समाप्त करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन भारतीय समाज में वर्गीय भेदभाव और असमानताओं को समाप्त करने के लिए और भी व्यापक और प्रभावी प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए सामाजिक जागरूकता, शिक्षा, और समावेशी विकास की आवश्यकता है, ताकि सभी वर्गों के लोग समाज में समान अधिकार और अवसर प्राप्त कर सकें। शक्ति और सामाजिक संरचना भारतीय समाज में शक्ति का वितरण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो जाति, वर्ग, लिंग, और अन्य सामाजिक कारकों द्वारा प्रभावित होती है। शक्ति का संबंध केवल राजनीतिक अधिकारों या आर्थिक संसाधनों से नहीं है, बल्कि यह समाज में व्यक्तिगत और सामूहिक नियंत्रण, निर्णय लेने की क्षमता और सामाजिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। भारतीय समाज में, शक्ति के विभाजन का प्रभाव विशेष रूप से सामाजिक संरचना में निहित असमानताओं को दर्शाता है, जैसे जातिवाद, वर्ग भेद और लैंगिक असमानताएँ। जाति और शक्ति का वितरण भारतीय समाज में जातिवाद और शक्ति का गहरा संबंध रहा है। पारंपरिक रूप से, उच्च जातियों को समाज में राजनीतिक, धार्मिक, और आर्थिक शक्ति प्राप्त थी। ब्राह्मणों और क्षत्रियों के पास न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक शक्ति थी। ब्राह्मणों को धार्मिक अनुष्ठान और शिक्षण का अधिकार था, जबकि क्षत्रियों को शासक और योद्धा के रूप में सम्मानित किया गया। इन उच्च जातियों के पास भूमि, संसाधन और समाज के अन्य क्षेत्रों में निर्णायक प्रभाव था। समय के साथ, विशेषकर औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के दौर में, शक्ति का वितरण कुछ हद तक बदलने लगा। व्यापारिक और औद्योगिक वर्गों ने अपनी शक्ति को बढ़ाया, और यह वर्ग शहरों और नगरों में प्रमुख बन गया। इसके साथ ही, औद्योगिक और प्रशासनिक वर्गों ने भी राजनीतिक शक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे समाज की शक्ति संरचना में बदलाव आया। पितृसत्तात्मक संरचना और लैंगिक शक्ति भारतीय समाज की शक्ति संरचना का एक महत्वपूर्ण पहलू पितृसत्तात्मक व्यवस्था है, जहां पुरुषों को घर, समाज, और राजनीति में नियंत्रण और प्रभुत्व प्राप्त होता है। महिलाओं की स्थिति इस संरचना में हमेशा हाशिए पर रही है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने महिलाओं को न केवल सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा, बल्कि उनकी भूमिका को भी सीमित कर दिया। भारतीय समाज में महिलाओं को अधिकांश रूप से घरेलू कार्यों और परिवार की देखभाल तक सीमित किया गया था, जबकि पुरुषों को बाहरी दुनिया में सक्रिय भूमिका निभाने का अधिकार प्राप्त था। महिलाओं के लिए शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी के अवसर सीमित थे, जिससे उनके पास सत्ता के स्रोतों तक पहुंच नहीं थी। हालांकि, समय के साथ महिलाओं के अधिकारों में कुछ सुधार हुए हैं और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं, फिर भी शक्ति का वितरण आज भी मुख्य रूप से पुरुषों के पक्ष में है। महिलाओं को राजनीति, आर्थिक क्षेत्रों, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अब भी समान अवसरों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना पड़ता है। ग्रामीण और शहरी शक्ति संरचना भारतीय ग्रामीण समाज में, जमींदारी व्यवस्था ने उच्च जातियों को न केवल सत्ता, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी नियंत्रण का अवसर दिया। जमींदारों के पास भूमि, श्रम और संसाधनों का नियंत्रण था, जिससे वे न केवल ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक संरचना को प्रभावित करते थे, बल्कि वे राजनीतिक ताकत के स्रोत भी बन गए। यह व्यवस्था आदिवासी, दलित, और पिछड़ी जातियों के लिए अत्यधिक शोषणकारी साबित हुई, क्योंकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक संसाधनों से वंचित रखा गया था। वहीं, शहरी क्षेत्रों में, औद्योगिक क्रांति और व्यापारिक वर्ग के उदय के साथ, शक्ति का पुनर्वितरण हुआ। व्यापारिक वर्ग ने आर्थिक प्रभाव के माध्यम से शहरी शक्ति संरचनाओं में अपनी जगह बनाई। प्रशासनिक और शहरी विकास के लिए नई नीतियाँ लागू की गईं, जिनसे शहरी समाज में एक नई शक्ति संरचना विकसित हुई। राजनीतिक शक्ति और अधिकारों का संघर्ष भारत में राजनीतिक शक्ति का वितरण भी सामाजिक संरचना से जुड़ा हुआ है। भारतीय समाज में राजनीतिक संस्थाओं में उच्च जातियों और शहरी वर्गों का दबदबा रहा है, जबकि निम्न जाति, दलित, और आदिवासी समुदायों को राजनीतिक क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी पाने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। हालांकि, भारतीय संविधान ने समाज के हर वर्ग को समान राजनीतिक अधिकार प्रदान किए हैं, फिर भी वास्तविकता में यह अधिकार कई बार उन समुदायों तक नहीं पहुँच पाते जिनके लिए ये विशेष रूप से सुरक्षित किए गए थे। दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसी योजनाएँ उनकी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास हैं, लेकिन इन योजनाओं के बावजूद, इन वर्गों के प्रतिनिधित्व में कई तरह की बाधाएँ बनी रहती हैं। समाज में कई तरह की संस्थागत असमानताएँ, जैसे कि राजनीतिक पदों पर उच्च जातियों का दबदबा, आर्थिक और सामाजिक शोषण, और लैंगिक भेदभाव, राजनीतिक सत्ता की वास्तविक भागीदारी में अवरोध उत्पन्न करती हैं। शक्ति का वितरण भारतीय समाज की संरचना में गहरे और जटिल रूप से अंतर्निहित है। जातिवाद, पितृसत्तात्मक संरचना, और आर्थिक असमानताओं के कारण शक्ति का वितरण असमान रहता है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में विभिन्न वर्गों के बीच संघर्ष और भेदभाव उत्पन्न होते हैं। हालांकि समय के साथ सामाजिक और राजनीतिक सुधारों ने कुछ सकारात्मक परिवर्तन लाए हैं, लेकिन शक्ति का वास्तविक वितरण अभी भी पारंपरिक और सामाजिक ढाँचों के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाया है। भारत में समानता और न्याय की दिशा में सशक्त कदम उठाने के लिए यह आवश्यक है कि शक्ति के वितरण को अधिक समावेशी और समान बनाना हो, ताकि हर वर्ग और जाति के लोग समाज में समान अधिकार और अवसरों का लाभ उठा सकें। इसके लिए राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों की आवश्यकता है, जो न केवल शक्ति के केंद्रीकरण को रोकें, बल्कि समाज में हर व्यक्ति की भूमिका और अधिकार को प्रकट करें। संस्कृति और सामाजिक संरचना संस्कृति का समाज की संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारतीय समाज में संस्कृति का निर्धारण विभिन्न धार्मिक, जातीय, और क्षेत्रीय परंपराओं से होता है। भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता ने विभिन्न समुदायों के बीच आपसी संबंधों, व्यवहारों और मान्यताओं को प्रभावित किया है। भारत में धर्म एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। हिंदू धर्म, इस्लाम, सिख धर्म, और ईसाई धर्म जैसी धार्मिक परंपराएँ भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों और जातियों के बीच विभाजन को मजबूत करती हैं। धार्मिक आदर्शों और आस्थाओं ने भारत में सामाजिक वर्गों को परिभाषित करने और उनकी पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था ने उच्च और निम्न जातियों के बीच सामाजिक असमानता को बनाए रखा है। इसके अतिरिक्त, भारतीय संस्कृति में परिवार और पितृसत्तात्मक व्यवस्था का भी महत्वपूर्ण स्थान है। परिवार की संरचना में पुरुषों का प्रभुत्व और महिलाओं का अधीनस्थ स्थान इस सामाजिक संरचना के अभिन्न अंग हैं। हालांकि, महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन पितृसत्तात्मक सोच अभी भी भारतीय समाज में व्यापक रूप से व्याप्त है। वर्ग, शक्ति और संस्कृति के बीच अंतर्संबंध वर्ग, शक्ति और संस्कृति भारतीय समाज में गहरे और जटिल तरीके से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। वर्गीय असमानता समाज के विभिन्न समूहों के बीच शक्ति के वितरण को प्रभावित करती है। उच्च जातियाँ और वर्ग समाज में सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखते हैं, जबकि निम्न वर्ग और दलित समुदाय अक्सर सत्ता और संसाधनों से वंचित रहते हैं। शक्ति और संस्कृति के बीच भी गहरा संबंध है। भारतीय समाज में संस्कृति को एक प्रकार का सत्ता संरचना माना जा सकता है, जिसमें धार्मिक, जातीय, और लैंगिक असमानताएँ समाज की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन गई हैं। यह असमानता न केवल आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों में भी असमानता उत्पन्न करती है। वर्ग, शक्ति और संस्कृति का भारतीय समाज में आपसी संबंध यह सिद्ध करता है कि समाज में असमानता केवल आर्थिक या राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी उत्पन्न होती है। उच्च जातियाँ और वर्ग, जिनके पास सांस्कृतिक अधिकार और संसाधन होते हैं, समाज में सत्ता और प्रभुत्व बनाए रखते हैं, जबकि दलित और पिछड़े वर्गों को सांस्कृतिक पहचान और शक्ति से वंचित किया जाता है। इस प्रकार, भारतीय समाज में वर्गीय असमानता और सांस्कृतिक भेदभाव की समस्या एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़ी हुई है। समाज में समानता और न्याय स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है कि हम शक्ति, वर्ग और संस्कृति के बीच के इस अंतर्संबंध को समझें और इन असमानताओं को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाएँ। केवल तभी हम एक समावेशी और समान समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिलें। निष्कर्ष भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में वर्ग, शक्ति और संस्कृति के परस्पर संबंधों का गहरा प्रभाव है। ये तत्व न केवल आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को भी प्रभावित करते हैं। भारतीय समाज में वर्गीय असमानता, शक्ति का असंतुलित वितरण और सांस्कृतिक विविधता के परिणामस्वरूप कई सामाजिक और राजनीतिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि जातिवाद, लैंगिक असमानता और आर्थिक विषमताएँ। इन असमानताओं के कारण समाज में हाशिए पर रहने वाले समूहों की आवाज़ दब जाती है, और उनके अधिकारों की रक्षा करने में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। शक्ति का असमान वितरण, विशेष रूप से उच्च जातियों और पुरुष प्रधान संरचनाओं के पक्ष में, भारतीय समाज में व्यापक असमानताओं को जन्म देता है। ये असमानताएँ सामाजिक न्याय, समानता और समावेशिता की दिशा में प्रमुख चुनौतियाँ पेश करती हैं। सांस्कृतिक विविधता के बावजूद, जब समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित नहीं होते, तब समाज में भेदभाव और संघर्ष बढ़ता है। यह स्थिति भारतीय समाज के सामाजिक ढांचे को कमजोर करती है और समग्र सामाजिक विकास में रुकावट डालती है। इस सामाजिक संरचना को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है कि भारत में सामाजिक न्याय, समानता, और समावेशिता की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। इसके लिए, हमें जातिवाद, लैंगिक असमानता और अन्य सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए प्रभावी नीतियाँ और उपायों को लागू करना होगा। साथ ही, उच्च जातियों और अन्य सशक्त वर्गों को अपनी शक्ति और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण करने की आवश्यकता है, ताकि समाज के हाशिए पर स्थित वर्गों को समान अवसर मिल सकें। यदि यह असमानताएँ दूर की जाएं और सशक्तिकरण की प्रक्रिया को गति दी जाए, तो भारतीय समाज की सामाजिक संरचना में एक सशक्त, समान और समृद्ध बदलाव लाया जा सकता है। समाज में समानता, न्याय और समावेशिता की प्राप्ति के लिए सभी वर्गों और समुदायों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है। केवल तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकेंगे, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले और हर वर्ग को समान अवसर प्राप्त हो। संदर्भ 1. 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Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 15, Issue 2, July-December 2024 |
Published On | 2024-12-10 |
Cite This | भारत में सामाजिक असमानता एवं वर्ग संघर्ष का समाजशास्त्रीय अध्ययन - Ramprasad Bairwa - IJAIDR Volume 15, Issue 2, July-December 2024. |
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