Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में प्रकृतिवाद का प्रभाव

Author(s) सोमदत्त शर्मा
Country India
Abstract आधुनिक हिंदी कविता में साहित्य एवं दर्शन के अंतः संबंध का वर्णन द्रष्टव्य है। कविता किसी निश्चित युग की होने के कारण उसमें उस युग के दर्शन का प्रभाव होना स्वाभाविक बात है। प्रकृतिवाद एक ऐसा दर्शन है जिसका मूल आधार प्रकृति है। इस पाश्चात्य दर्शन का जन्म 18वीं सदी में जीन जैक्स रूसो के द्वारा हुआ था, जिसका भारतीय संस्करण रूप 19वीं सदी में रवींद्रनाथ टैगोर ने प्रस्तुत किया था। रूसो एवं टैगोर दोनों के प्रकृतिवाद में भिन्नता पाई जाती है। हिंदी साहित्य के छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की प्रारंभिक कविताओं में इस प्रकृतिवाद का प्रभाव देखने को मिलता है। रूसो का प्रकृतिवाद एक पाश्चात्य सिद्धांत था जिसका मूलाधार प्रकृति में भौतिक शक्ति का चित्रण था लेकिन टैगोर का सिद्धांत पूर्णतः भारतीय था, जिसमें प्रकृतिवाद और आदर्शवाद का समन्वय निहित है। दोनों प्रकृति को ज्ञान का मूल स्रोत मानकर उसकी गोद में प्राप्त शिक्षा पर अपना दर्शन स्थापित किया है। ठीक इसी तरह पंत ने प्रकृति को शिक्षिका मानी है। प्रकृति से प्राप्त शिक्षा को उन्होंने अपनी कविताओं में वर्णन किया है। पंत की कविता भारतीय दर्शन से प्रभावित रवींद्रनाथ टैगोर का प्रकृतिवाद के ज्यादा करीब है; क्योंकि जहां टैगोर का दर्शन उस निर्दिष्ट युग में विद्यमान विचार-श्रृंखला का ज्ञात करवाता है, वहां पंत ने उस श्रृंखला को अपने काव्य में समुचित स्थान दिया है।
Keywords प्रकृतिवाद, अध्यात्मवाद, भौतिक जगत, रहस्यवाद, अरविंद दर्शन, मानस, अतिमानस
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-01-20
Cite This सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में प्रकृतिवाद का प्रभाव - सोमदत्त शर्मा - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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