Journal of Advances in Developmental Research
E-ISSN: 0976-4844
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Volume 16 Issue 1
2025
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वैश्वीकरण के साए में विलुप्त होती हिंदी साहित्यिक और सांस्कृतिक पहचान
Author(s) | Gopal Lal Dheru |
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Country | India |
Abstract | साहित्य और समाज का अटूट संबंध ऐसा है जैसे सूर्य की किरणें पृथ्वी को आलोकित करती हैं। साहित्य, समाज में चेतना का संचार करते हुए उसके निर्माण में सहायक होता है, जबकि समाज साहित्य को संदर्भ और प्रासंगिकता प्रदान करता है। इस प्रकार, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वैश्वीकरण, जिसे पूंजीवाद के चरम विकास का प्रतीक माना जा सकता है, कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि यह एक अनवरत प्रक्रिया है, जो सदियों से मानव समाज पर प्रभाव डालती आ रही है। यह भूमंडलीकरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था के नाम पर एक नई संरचना गढ़ता है, जिसमें वैश्विक शक्तियां अपनी आर्थिक और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं को थोपती हैं। वैश्वीकरण ने "वसुधैव कुटुंबकम्" जैसे आदर्शों का भ्रम पैदा कर दुनिया को एक "गांव" में तब्दील करने का वादा किया, लेकिन इसके पीछे एक ऐसा तंत्र काम कर रहा है जो अमीरों का वर्ग बनाता है और आमजन को हाशिये पर ढकेलता है। इस परिदृश्य में, साहित्य का स्थान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। साहित्य समाज का दर्पण है, और इसके बिना किसी भी राष्ट्र या समाज की कल्पना अधूरी है। साहित्य न केवल व्यक्तित्व के विकास में मदद करता है, बल्कि यह समाज के मूल्यों, विचारों और संस्कृतियों को संरक्षित और समृद्ध करता है। यह वैश्वीकरण के युग में एक चुनौतीपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जहां बाजार की ताकतें सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक साहित्य को हाशिए पर धकेल रही हैं। भले ही समाज और परिस्थितियों के अनुरूप साहित्य का स्वरूप बदलता रहता है, लेकिन इसका प्रभाव सदैव स्थायी रहता है। साहित्य की शक्ति न केवल समाज को जोड़ने में है, बल्कि यह विचारधारा, परंपरा और संस्कृति का पोषण करते हुए सामाजिक परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त करता है। वैश्वीकरण के दबाव में, जब सांस्कृतिक और भाषाई विविधता खतरे में है, साहित्य एक मजबूत प्रतिरोध के रूप में उभरता है, जो स्थानीयता और परंपरा के महत्व को बनाए रखने की वकालत करता है। इस संदर्भ में, साहित्य केवल लेखन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना का आधार है। अच्छे साहित्य के बिना अच्छे समाज और व्यक्तित्व की कल्पना असंभव है। साहित्य समाज को उसकी जड़ों से जोड़ता है और भूमंडलीकरण के प्रभावों के बावजूद समाज को नई दिशा प्रदान करता है। शब्दकुंजी: वैश्वीकरण, साहित्य, समाज, संस्कृति, चेतना, भूमंडलीकरण, नई दिशा । साहित्य और समाज: अटूट संबंध साहित्य और समाज का संबंध पारस्परिक और गहरा है। साहित्य का निर्माण समाज की परिस्थितियों, उसकी संस्कृति, और समय की प्रवृत्तियों से प्रभावित होता है। जिस युग का समाज जैसा होता है, उस युग का साहित्य भी वैसा ही रूप लेता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। यदि हम किसी युग के सामाजिक उत्थान-पतन, आचार-व्यवहार, सभ्यता और संस्कृति को समझना चाहते हैं, तो उस युग का साहित्य इसका सबसे विश्वसनीय स्रोत होता है। साहित्य, समाज की विचारधाराओं और भावनाओं का प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है, और यह समाज के स्वरूप को जीवंत रूप में प्रदर्शित करता है। समाज पर साहित्य का प्रभाव साहित्य समाज का केवल अनुकरण नहीं करता, बल्कि उसे बदलने की क्षमता भी रखता है। साहित्य सामाजिक सुधार और चेतना का एक सशक्त माध्यम है। यह मनुष्य को नई दिशा, प्रेरणा और दृष्टिकोण प्रदान करता है। साहित्य अंधविश्वास, रूढ़ियों और जड़ मानसिकताओं को तोड़ता है तथा समाज को नई रोशनी में देखना सिखाता है। उदाहरण के लिए, फ्रांस में रूसो के और रूस में मार्क्स के साहित्य ने क्रांतियों को जन्म दिया। भारत में तुलसीदास और सूरदास जैसे साहित्यकारों ने भक्ति साहित्य के माध्यम से समाज में अध्यात्म और नैतिकता का प्रचार किया। साहित्य समाज को उसके भीतर छिपी संभावनाओं से परिचित कराता है और उसकी दिशा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। साहित्य का महत्व साहित्य को मस्तिष्क का भोजन कहा गया है। यह मनुष्य के विचारों को ताजगी और सृजनशीलता प्रदान करता है। यद्यपि यह विज्ञान का युग है, लेकिन केवल विज्ञान ही मानवता के मानवीय गुणों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। विज्ञान शक्ति देता है, लेकिन प्रेम, दया, करुणा और सहानुभूति जैसे मानवीय गुणों का संचार केवल साहित्य कर सकता है। कार्लाइल का कथन, "मैं ब्रिटिश साम्राज्य को छोड़ सकता हूं, लेकिन शेक्सपियर की रचना को नहीं छोड़ सकता," साहित्य की महत्ता को रेखांकित करता है। आज के वैश्वीकरण के युग में, जब समाज पश्चिमी प्रभाव में डूबा हुआ है और विज्ञान की प्रगति ने जीवन को यांत्रिक बना दिया है, साहित्य एक नई आशा और ऊर्जा का संचार करता है। उत्कृष्ट साहित्य के बिना समाज का उत्थान असंभव है। साहित्य हमें न केवल भौतिक समृद्धि से ऊपर उठने की प्रेरणा देता है, बल्कि हमारे जीवन और समाज को नैतिकता, संस्कृति और मूल्यों से भर देता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य वर्तमान समय में, समाज को उत्कृष्ट साहित्य की आवश्यकता है, जो उसे नई दिशा और गहराई प्रदान करे। साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन न मानते हुए, इसे समाज की जड़ों से जोड़ने वाला माध्यम समझा जाना चाहिए। काव्य, कहानी, और गीतों के माध्यम से समाज में नई चेतना का संचार होना चाहिए। साहित्य में वे आयाम जोड़े जाने चाहिए, जो समाज को उसकी पुरानी गौरवशाली परंपराओं से जोड़ते हुए, उसे भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करें। उद्देश्य और परिकल्पना • साहित्य समाज के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। • वैश्वीकरण का प्रभाव साहित्य और समाज दोनों पर सकारात्मक रूप से पड़ सकता है। • साहित्य के माध्यम से समाज की वैचारिक, नैतिक और सांस्कृतिक उन्नति संभव है। शोध प्रविधि इस अध्ययन में शोधकर्ता ने मौलिक विचारों और द्वितीयक आंकड़ों के माध्यम से समाज और साहित्य के गहन संबंधों का विश्लेषण किया है। साहित्य और समाज का संबंध अनवरत है। साहित्य समाज को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करता है, और समाज साहित्य को उसकी विषयवस्तु। उत्कृष्ट साहित्य समाज की जड़ों को सींचता है और उसकी चेतना को प्रबल करता है। एक उन्नत समाज के निर्माण के लिए साहित्य को प्रोत्साहित करना और उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना आवश्यक है। प्रेरणा "अंधकार है वहां, जहां आदित्य नहीं है। मुर्दा है वह देश, जहां साहित्य नहीं है।" |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 16, Issue 1, January-June 2025 |
Published On | 2025-01-20 |
Cite This | वैश्वीकरण के साए में विलुप्त होती हिंदी साहित्यिक और सांस्कृतिक पहचान - Gopal Lal Dheru - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025. |
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10.71097/IJAIDR
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