
Journal of Advances in Developmental Research
E-ISSN: 0976-4844
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Volume 16 Issue 1
2025
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तीसरा रंगमंच: मानव सभ्यता और संस्कृति रचना
Author(s) | पप्पू राम |
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Country | India |
Abstract | रंगमंच और मानव सभ्यता का संबंध अत्यंत प्राचीन है, जो संस्कृति के विकास के साथ-साथ निरंतर विकसित होता रहा है। जब हम मनुष्य को संस्कृति के केंद्र में रखते हुए इस संबंध पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि रंगमंच न केवल जीवन के संघर्षों से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह मनोरंजन और खेल की प्रवृत्तियों का भी अभिन्न हिस्सा है। इन दोनों प्रवृत्तियों को समझते हुए जब हम रंगमंच पर विचार करते हैं, तो यह जाहिर होता है कि यह कला का एक ऐसा माध्यम है, जिसमें मनोरंजन अन्य कलाओं की तुलना में अधिक प्रमुखता से दिखाई देता है। हालांकि, यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पक्षों को अभिव्यक्त करते हुए दर्शकों को सोचने और सवाल करने के लिए प्रेरित करता है। भारत में रंगमंच की दो प्रमुख परंपराएँ समानांतर रूप से विकसित हुई हैं - एक नाट्यधर्मी रंगमंच परंपरा और दूसरी लोकधर्मी रंगमंच परंपरा। जब हम हिंदी रंगमंच के उद्भव और विकास पर विचार करते हैं, तो हमारी सबसे पहली दृष्टि संस्कृत रंगमंच पर पड़ती है। संस्कृत के साथ-साथ पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी नाट्य मंच का उल्लेख मिलता है। भारतीय रंगमंच की परंपरा में अंग्रेजी शासन के दौरान, विशेष रूप से उन्नीसवीं शताबदी में, व्यावसायिक रंगमंच के रूप में पारसी रंगमंच का उदय हुआ। इस संदर्भ में नेमीचंद्र जैन का मानना है कि "उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पश्चिम से अंग्रेज उपनिवेशवादियों के माध्यम से जो रंगमंच हमारे देश में आया, वह मूलतः ह्रासोन्मुख रंगमंच था, जिसे अंग्रेजों ने जाने-अनजाने हम पर थोप दिया।" आधुनिक हिंदी रंगमंच के इतिहास में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अव्यावसायिक रंगमंच की दिशा में अभूतपूर्व योगदान दिया और हिंदी नाटक तथा रंगमंच की नींव रखी। भारतेंदु के पश्चात, जयशंकर प्रसाद ने अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से हिंदी नाट्य परंपरा और रंगमंच को एक नया मुकाम प्रदान किया। उनके योगदान के बाद, उपेंद्रनाथ 'अश्क', लक्ष्मीनारायण मिश्र, हरिकृष्ण प्रेमी, विष्णु प्रभाकर, जगदीशचंद्र माथुर, मोहन राकेश जैसे नाट्यकारों और रंगकर्मियों ने रंगमंच को नई दिशा दी। बीसवीं शताबदी के पांचवे दशक में भारतीय रंगमंच में और अधिक गतिशीलता आयी, विशेषकर हिंदी रंगमंच के क्षेत्र में। संगीत नाटक अकादमी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय रंगमंच की नींव रखी गई। साथ ही स्वतंत्र नाटककारों, निर्देशकों और अभिनेताओं ने रंगमंच को गति दी। 1970 के दशक तक यह आंदोलन व्यापक रूप से रंगदोलन के रूप में विकसित हुआ। इस दौर में कई नाटककार, रंगकर्मी और नाट्य संस्थाएं नए तत्वों की खोज और नए रंगप्रयोगों की दिशा में अग्रसर हुईं। इन रंगप्रयोगों में एक महत्वपूर्ण योगदान था वादल सरकार का 'तीसरा रंगमंच', जिसे सातवें दशक के रंगमंच का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा सकता है। यदि कहा जाए कि इस दौर का रंगपरिवेश मोहन राकेश, विजय तेंदुलकर, गिरीश कर्नाड और बादल सरकार के योगदान से ही संपूर्ण होता था, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि, इन सभी में केवल बादल सरकार ही ऐसे थे जिन्होंने शुरुआत से लेकर अंत तक रंगकर्म को प्राथमिकता दी और इस क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहे। देवेंद्र राज अंकुर के अनुसार, "बादल सरकार ही ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने हमेशा रंगकर्म को अपने जीवन का हिस्सा माना और आज भी उतने ही सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता त्रिआयामी रूप में प्रस्तुत होती है - पहले अभिनेता, नाटककार और निर्देशक के रूप में, फिर नाटककार के रूप में तीन विभिन्न दौरों के नाट्यलेखन से गुजरते हुए, और अंत में एक रंगचिंतक के रूप में भारतीय रंगकर्म में एक नए सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में स्थापित होते हुए।" तीसरे रंगमंच की पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए हम यह पाते हैं कि इससे पूर्व दो प्रमुख रंग परंपराएं अस्तित्व में थीं। पहली परंपरा थी यथार्थवादी रंगमंच, जो पूरी तरह से पश्चिमी देशों से आयातित थी और जिसका मूल आधार पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित था। इसका मुख्य उद्देश्य दर्शकों को विभ्रम की दुनिया में खो जाने के लिए प्रेरित करना था। दूसरी परंपरा थी लोक या पारंपरिक रंगमंच, जो अपनी विशिष्टता में भरपूर मनोरंजन, जैसे गीत, संगीत, नृत्य, मुद्राएं, आकर्षक वेशभूषा, रंग और रूप-सज्जा जैसे तत्वों के माध्यम से दर्शकों को एक कल्पनालोक में ले जाने में सक्षम थी। |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 16, Issue 1, January-June 2025 |
Published On | 2025-01-27 |
Cite This | तीसरा रंगमंच: मानव सभ्यता और संस्कृति रचना - पप्पू राम - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025. |
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10.71097/IJAIDR
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