Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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आचार्य रामानुज दर्शन में अज्ञान का प्रत्याख्यान

Author(s) डॉ सुरेंद्र कुमार तोसावड़ा
Country India
Abstract आचार्य रामानुज के अनुसार अद्वैत वेदान्त की मान्यता है अज्ञान भाव रूप है | मायावादियों के द्वारा अज्ञान को भाव रूप मानने के लिए तर्क देना ठीक वैसा ही असम्भव है जैसा कोई पशु आकाश का पागुर जुगाली, चर्वित चर्वण करे भाव रूप में अज्ञान को मानना ज्ञानाभाव के रूप में मानने के ही बराबर है |
भूमिका -
आचार्य रामानुज ने अज्ञान का खण्डन करते हुए श्री भाष्य में अपना मत प्रस्तुत किया है –
किञ्चित आश्रयानुपपति – अविद्या का आश्रय अनुपपन्न है | जीव व ब्रह्म दोनों अविद्या का आश्रय नहीं हो सकते जीवतो खुद एक अविद्या – कल्पित है |
“न तावत् जीवमाश्रित्य अविद्या परिकल्पितत्वाज्जीव भावस्था”
अविद्या जिस वजह से आभासित होती है वह अपने का कारण आश्रय नहीं हो सकती | अगर माने तो अविद्या की उत्पत्ति भी जीव के द्वारा ही होती है | इसलिए दोनों एक दुसरे पर ही आश्रित हैं | जीव की कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं है क्योंकि वह खुद अकल्पित ब्रह्म है |
अतः अविद्या का आश्रय जीव नहीं हो सकता किन्तु ब्रह्म को भी अविद्या का आश्रय स्वीकार नहीं किया जा सकता | क्योंकि वह स्वयं प्रकाश ज्ञान स्वरूप होने से अविद्या विरोधि है | “नापि ब्रह्मा श्रित्य, तस्म स्वयं प्रकाश ज्ञान स्वरूपत्वेना विद्याविरोधत्वात् |” (श्रीभाष्य)
प्रकाश को यदि अविद्या का आश्रय माना जायेगा तो वह सत्य व शुद्ध रूप में नहीं रहता है | क्योंकि अविद्या प्रकाशविरोधि और ब्रह्मज्ञानस्वरूप है | दर्शनशास्त्र के अनुसार अद्वैतवादी मायावादी के आवरण शक्ति ढकी हुई रहने के कारण ही जीव अपने ब्रह्म स्वरूप के ज्ञान में असमर्थ रहता है | उसकी क्रिया की प्रतिक्रिया में रामानुज अपने दर्शन में कहते हैं प्रथम तो अविद्या का आवरण करना ही असम्भव है क्योंकि खुद प्रकाश चैतन्य किसी आवरण का विषय नहीं हो सकता और यदि प्रकाश एक स्वरूप ब्रह्म को अविद्या की तरह मान लें तो इसका वास्तविक स्वरूप ही नष्ट हो जायेगा क्योंकि अविद्या के द्वारा उस प्रकाश के रूप ब्रह्म के प्रकार के प्रति अवरोध का पर्याय होगा जिससे वर्तमान ज्ञान का विनाश और आगामी प्रकाश की उत्पत्ति पर प्रतिबन्ध |
“अविद्या प्रकाशैकस्वरूपं ब्रह्मतिरोहितमिति वदता स्वरूप नाश एव तस्य स्यात् | प्रकाशतिरोधानं नाम प्रकाशोत्पत्ति प्रतिबन्धः | विद्यमानस्य विनाशो वा |”
दर्शन शास्त्र के विद्वानों के अनुसार शुद्ध ज्ञान स्वरूप, नित्य और सत् परमात्मा कभी भी एक बिना आकर व स्वरूप वाला होता है यदि आपके सिद्धान्त द्वारा ऐसे वह अविद्यायुक्त हो जाता है तो उसका भी तिरोधान नहीं हो सकता | ऐसी अवस्था में बहुत ज्यादा झूठ की तरह रह जाएगी | इसके स्वरूप की उत्पत्ति के रूप में आचार्य रामानुज अविद्या की सत्ता के विषय में तीसरा बोध बताते हैं कि अविद्या का स्वरूप प्राप्त ही नहीं होता, क्योंकि उसको न तो सत्य माना जासकता न ही असत्य | इस विषय में सैद्धान्तिक विचार करें तो इससे शंकर का अद्वैत का सिद्धान्त ही समाप्त हो जायेगा | क्योंकि अद्वैतवादी एक भाव ब्रह्म को हीसत् पदार्थ मानते हैं | अविद्या को सत्य ही नहीं माना जा सकता | जिस चीज की अवस्था के विषय में हमें ज्ञान न हो और कारण भी असत् ही हो उसको मानने पर अनवस्था दोषपूर्ण हो जायेगा | यदि अविद्या के नित्यक्रम होने पर उसके परिहार का त्याग कैसे भी करके सम्भव नहीं होगा इस प्रकार मोक्षादि का प्रश्न भी नहीं उठेगा |
“ब्राह्मणों दोषत्वे सति तस्यानित्यत्वेनानिर्मोक्षश्चस्यात् |
प्रतीतेः सद सद् विलक्षणविषयः सत्यमुपगम्यमाने सर्व सर्व प्रतीते विषयः |”
दर्शन के विषय में शंकराचार्य ने अविद्या को अनिर्वचनीय बताया है | उसका खण्डन करते हुए रामानुज कहते हैं कि संसार में दो ही प्रकार के पदार्थ होते हैं – सत्य और असत्य और किसी भी प्रकार से सत्य व असत्य की अनुभूति के बिना इस संसार में अन्य कोई ज्ञान का विषय उपलब्ध नहीं होता | इसका अभिप्राय यह है कि सदसद् विलक्षण वस्तु की सत्ता में कोई प्रमाण नहीं है | इस प्रकार ही अविद्या की अनिर्वचनीयता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है | अगर माने तो इसका अभिप्राय यह है कि संसार की समस्त वस्तुओं की प्रतीति उनकी सदसदाकारा है | अगर हम सदसद् वस्तु को भी सदसद्कारा प्रतीति का विषय मान भी लें तो सम्पूर्ण जगत् की प्रतीति समस्त जीवों का विषय बन जायेंगी | “सर्वं हि वस्तु जात प्रतीति व्यवस्थापरम् | सर्वा न प्रतीतिः सदसदाकारा | सदसदा – कारोऽथस्तु प्रतीतेः सदसद् विलक्षण विषय सत्यमुपगम्यमाने सर्व सर्व प्रतीते विषयस्य |
इस प्रकार विरोधाअभिव्यक्ति हेतु पर्याप्त विरोध आ जायेगा |
Keywords .
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-02-15
Cite This आचार्य रामानुज दर्शन में अज्ञान का प्रत्याख्यान - डॉ सुरेंद्र कुमार तोसावड़ा - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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