
Journal of Advances in Developmental Research
E-ISSN: 0976-4844
•
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Volume 16 Issue 1
2025
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जयपुर चित्रकला शैली : मुगल और राजपूत शैली का सम्मिलन
Author(s) | दीपेश कुमार टेटवाल |
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Country | India |
Abstract | भारत के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में राजस्थान ने एक विशिष्ट स्थान हासिल किया है। इसे पहले 'राजपूताना' कहा जाता था, जो कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिया गया नाम है। राजस्थान की ऐतिहासिक महत्ता सिर्फ युद्धों और शौर्य के कारण ही नहीं, बल्कि कला और संस्कृति में भी इसका योगदान अद्वितीय रहा है। यहाँ के चित्रकला के रूप में प्राचीन और आधुनिक दोनों कालों में समृद्ध परंपराएँ देखने को मिलती हैं। राजस्थान की चित्रकला अपनी विविधता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है, जो भित्ति चित्रों, संग्रहालयों और विभिन्न सार्वजनिक एवं निजी स्थानों में उकेरी गई है। इन चित्रों ने न सिर्फ राजस्थान की संस्कृति और इतिहास को संरक्षित किया, बल्कि भारतीय चित्रकला के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजस्थानी चित्रकला की परंपरा बहुत पुरानी और समृद्ध रही है। इसे 16वीं सदी में विशेष पहचान मिली, जब इसने अपभ्रंश शैली, जैन शैली और पश्चिमी भारतीय शैली का संगम दिखाया। के. पीजाय सवाल ने इसे ग्यारहवीं शताब्दी के उदयादित्य के चित्रों से जोड़ा है, जो एलोरा में बनाए गए थे। इसके बाद, 8वीं शताब्दी के गुर्जर-प्रतिहार काल से लेकर 16वीं शताब्दी तक, राजपूताना में चित्रकला ने अपनी पूरी यात्रा तय की। इस दौरान, विभिन्न शैलियाँ जैसे अपभ्रंश शैली, जैन शैली और पश्चिमी भारतीय शैली का प्रभाव देखा गया, जिससे राजस्थानी चित्रकला को एक नया रूप मिला। सवाई जय सिंह के समय जयपुर में चित्रकला की एक नई दिशा देखने को मिली। उन्होंने न केवल कला को प्रोत्साहित किया, बल्कि इसे एक शास्त्रीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी जोड़ा। जयपुर चित्रकला की शैली में धार्मिक चित्रण, शाही दरबारों के दृश्य, और राजसी जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाया गया। उनके संरक्षण और प्रोत्साहन से यह कला एक नई ऊंचाई पर पहुंची और जयपुर चित्रकला को भारतीय कला जगत में एक विशिष्ट स्थान मिला। इस दौरान चित्रकला न केवल कला रूप में विकसित हुई, बल्कि समाज पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा, जो उस समय के लोगों के जीवन, उनके विश्वासों और सांस्कृतिक परिवेश को चित्रित करता था। राजस्थानी चित्रकला का यह सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण आज भी महत्व रखता है, और यह भारतीय कला की एक अमूल्य धरोहर के रूप में जानी जाती है। |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 16, Issue 1, January-June 2025 |
Published On | 2025-02-16 |
Cite This | जयपुर चित्रकला शैली : मुगल और राजपूत शैली का सम्मिलन - दीपेश कुमार टेटवाल - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025. |
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